Swami Vivekananda Biography in Hindi: स्वामी विवेकानन्द जी वेदान्त के विख्यात एवं प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका असली नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। सन् 1893 में उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में एक विश्व धर्म महासभा का आयोजन किया गया था। जिसमें भारत की तरफ से इन्होंने सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में भारत का वेदान्त स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता की वजह से ही पहुँचा।
विवेकानन्द जी ने ही रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी, जो आज भी अपना कार्य कर रहा है। विवेकानन्द जी रामकृष्ण परमहंस शिष्य थे। जिन्हें मुख्य रूप से उनके भाषण की शुरुआत मेरे अमेरिकी भाइयों एवं बहनों के साथ करने के लिए पहचाना जाता हैं। उनके इस संबोधन ने सभी का दिल जीत लिया था।
Swami Vivekananda Biography in Hindi
Name | Swami Vivekananda |
Date of Birth | 12 Jan 1863 |
Birth Place | Calcutta |
Father Name | Vishwanath Datta |
Mother Name | Bhubaneswari Devi |
स्वामी विवेकानंद का जीवन | Swami Vivekananda Life
स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म ( Swami Vivekananda Birth ) कलकत्ता में 12 जनवरी सन् 1863 को हुआ था। बचपन में इन्हें नरेन्द्रनाथ के नाम से जाना जाता था। इनके पिता कलकत्ता हाईकोर्ट में एक मशहूर वकील थे। जिनका नाम विश्वनाथ दत्त था और वो पाश्चात्य सभ्यता में यकीन करते थें । इनकी माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, जो एक धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। उनका अधिकतर समय भगवान शिव की पूजा अर्चना करने में ही गुजरता था।
स्वामी विवेकानन्द बचपन से ही तीव्र बुद्धि के थे, एवं परमात्मा को पाने की इनकी लालसा भी बेहद ही प्रबल थी। इसी कारण पहले वो ब्रह्म समाज में गये, लेकिन वहां उनके मन को शांति नहीं मिली। विवेकानन्द जी वेदान्त और योग को पश्चिम संस्कृति में प्रचलित करने के लिए अहम भूमिका निभाना चाहते थे, लेकिन उसी दौरान उनके पिता की मौत हो गई और पूरे घर की जिम्मेदारी उन पर आ गई। उनके घर की हालत बेहद खराब थी, लेकिन वे बड़े अतिथि-सेवी थे। खुद भुखे रह जाते थे, लेकिन अतिथि को भोजन कराते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन अपने गुरु श्रीरामकृष्ण को समर्पित कर दिया था। गुरुदेव के शरीर त्यागने के दिनों में उन्होंने अपने घर की नाजुक हालत की चिंता नहीं की और अपने गुरु जी की सेवा में लग गए।
विवेकानंद जी का बचपन | Swami Vivekananda Childhood
स्वामी विवेकानंद जी बचपन से ही तेज बुद्धि के और नटखट स्वभाव के थे। वे अपने साथी बच्चों के साथ शरारत करते ही थे, बल्कि जब भी उन्हें अवसर मिलता। वो अपने अध्यापकों के साथ भी शरारत करने से बाज नहीं आते थे। उनके घर में रोज पूजा अर्चना होती थी।
उनकी मां धार्मिक स्वभाव को होने के कारण रामायण और महाभारत की कथा बेहद शौक से सुनते थे। उनके परिवार के धार्मिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के कारण नरेन्द्र के मन में बचपन से ही धर्म एवं अध्यात्म के प्रति संस्कार पड़ गए। स्वामी विवेकानंद जी कभी कभी ईश्वर को जानने की उत्सुक्ता में ऐसे सवाल पूछते थे,कि इनके माता पिता और कथावाचक पंडितजी चक्कर में पड़ जाते थे।
स्वामी विवेकानन्द का शिक्षा-दर्शन | Swami Vivekananda Education
स्वामी विवेकानन्द जी मैकाले के द्वारा प्रतिपादित और उस समय प्रचलित अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ थे, क्योंकि इस शिक्षा का उद्देश्य केवल बाबुओं की संख्या में बढ़ोतरी करना था। जबकि विवेकानंद जी ऐसी शिक्षा चाहते थे ताकि बालक का सर्वांगीण विकास हो सके और उसको आत्मनिर्भर बना अपने पैरों पर खड़ा करना है।
स्वामी विवेकानंद जी बालक को शिक्षा के द्वारा लौकिक एवं परलौकिक दोनों जीवन के लिए तैयार करना चाहते हैं। लौकिक दृष्टि से शिक्षा के सम्बन्ध में उनका कहा है कि हमें ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए,जिससे चरित्र का गठन हो, मनोबल बढ़े,बुद्धि का सर्वांगीण विकास हो और बालक स्वावलम्बी बने।’
स्वामी विवेकानंद जी की मृत्यु | Swami Vivekananda Death
विवेकानंद जी के ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि पुरे विश्व में है। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या करते हुए कहा, कि एक और विवेकानन्द होना चाहिये। जो यह समझाएगा कि इस अब तक इस विवेकानंद ने क्या किया। उनके शिष्यों के मुताबिक अपने जीवन के आखिरी दिन 4 जुलाई सन् 1902 को भी उन्होंने अपनी दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं किया था।
वे सुबह उठे और दो तीन घंटे ध्यान लगाया और उसी ध्यानावस्था में अपने ब्रह्मरन्ध्र को भेदकर महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा तट पर चन्दन की चिता पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। ये वही घाट था,जिसके दूसरी तरफ उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पहले अन्तिम संस्कार किया गया था।