Acharya Chanakya Biography in Hindi: आचार्य चाणक्य प्राचीनकाल के भारतीय राजशास्त्रियों में अपना एक अहम स्थान रखते है। आज पूरा समाज जिस आचार्य को कौटिल्य के नाम से जानता है उसका असली नाम विष्णगुप्त शर्मा है। आचार्य चाणक्य एक ऐसे व्यक्ति थे, जो अपनी बुद्धि के दम पर सामने वाले को हरा देते थे।
उन्होंने अपने शिष्य चंद्रगुप्त के साथ मिलकर एक अखंड भारत की स्थापना की थी। आज के समय में किसी बुद्धिमान व्यक्ति के लिए चाणक्य और कौटिल्य जैसे नामों का इस्तेमाल किया जाता है। चाणक्य को ही कौटिल्य विष्णुगुप्त और वात्सायन कहा जाता है। उनका पूरा जीवन बेहद ही मुश्किल एवं रहस्यों से भरा है।
Acharya Chanakya Biography in Hindi
आचार्य चाणक्य का जीवन परिचय
आचार्य चाणक्य के जन्म स्थान के संबंध में विद्वान का एक मत नहीं है। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार कौटिल्य का जन्म 375 ईसा पूर्व तक्षशिक्षा में हुआ था। जबकि जैन ग्रंथों में उनका जन्मस्थान अवणवेई मैसूर राज्य के गोल प्रदेश माना जाता है। आचार्य चाणक्य एक महान अर्थशास्त्री, प्रधानमंत्री, राजनीतिज्ञ, शिक्षक और एक मार्गदर्शक होने के साथ-साथ शाही सलाहकार भी थे। वे एक ब्राह्मण थे, जिन्होंने अर्थशास्त्र पुस्तक लिखी थी।
चाणक्य जब छोटे थे, तो उनके एक कुत्ते का दांत था और लोगों का ऐसा मानना था, कि जिस व्यक्ति के कुत्ते का दांत होता है वह एक राजा बनता है। जिसे सुनकर उनकी माता को चिंता होने लगी, कि अगर उसका बेटा राजा बन जाएगा, तो उसे छोड़ देगा। यह देख चाणक्य ने अपना दांत तोड़ दिया और अपनी मां से कहा, कि वे कभी राजा नहीं बनेगे। इस कारण उनकी पूरी वेशभूषा भद्दी सी हो गई।
चाणक्य का भरी सभा में अपमान
मगध साम्राज्य के सम्राट धनानंद ने एक दिन ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा के लिए अपने महल में बुलाया था। उस कार्यक्रम में आचार्य चाणक्य भी मौजूद थे। लेकिन चाणक्य की वेशभूषा देखकर धनानंद ने उन्हें वहां से निकाल दिया। उसी दौरान हुई मुठभेड़ में चाणक्य का जनेऊ टूट गया, और उन्होंने धनानंद को श्राप दिया, कि वे उसके राज्य को नष्ट कर देंगे। जिसके बाद चाणक्य को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन धनानंद के पुत्र पब्बता की मदद से चाणक्य बच गए।
चाणक्य ने बनाए सोने के सिक्के
आचार्य चाणक्य धनानंद के राज्य से निकलकर विंझा के जंगलों में पहुंचे। जहां उन्होंने एक तकनीक का प्रयोग कर 800 मिलियन से भी ज्यादा सोने के सिक्कों का निर्माण किया। यह तकनीक ऐसी थी, कि एक सिक्के को आठ सिक्कों में तब्दील कर देती थी। उन्होंने इन सिक्कों को छुपा दिया और एक योग्य व्यक्ति की खोज करने लगे, जो धनानंद के बाद राजा बने। एक दिन उन्होंने देखा, कि चंद्रगुप्त नाम का लड़का बहुत अच्छे तरीके से अपने दोस्तों को आदेश दे रहा है।
बता दे, चंद्र गुप्त का जन्म शाही परिवार में हुआ था। लेकिन उनके पिता की युद्ध में मृत्यु हो गई थी। इस कारण उनकी माता ने देवताओं के कहने पर अपने पुत्र को त्याग दिया था। चंद्रगुप्त का पालन-पोषण एक शिकारी ने किया था और काम के बदले उसे पैसे देता था। तो आचार्य चाणक्य चंद्रगुप्त के आदेशात्मक कार्यों से बहुत प्रभावित हुए और उस शिकारी को हजार सोने के सिक्के देकर चंद्रगुप्त को ले गए।
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चाणक्य ने ली शिष्यों की परीक्षा
पब्बता धनानंद का पुत्र था, जो राजा बनने की चाह रखता था। लेकिन वह अपने पिता के साथ नहीं रहना चाहता था। आचार्य ने इसका फायदा उठाया और उसे अपने साथ मिला लिया। अब चाणक्य के पास चंद्रगुप्त और पब्बता दो शिष्य हो गए। जिनमें से चाणक्य को किसी एक का चुनाव करना था, जो राजा बनने योग्य हो। परीक्षा लेने के लिए आचार्य चाणक्य ने दोनों को एक-एक धागा गले में डालने को दिया।
जब चंद्रगुप्त सो रहा था, तो चाणक्य ने पब्बता से उस धागे को बिना जगाए उसके गले से निकालने का कहा, लेकिन पब्बता सफल नहीं हो सका। इसके बाद चंद्रगुप्त भी यहीं कहा, जब पब्बता नींद में था। चंद्रगुप्त ने पब्बता के सिर को काट दिया और धागे को निकाल लिया। उसके बाद आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजकीय कार्यों के लिए तैयार करना शुरू किया। तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए भेजा। चंद्रगुप्त के बड़े होने के बाद चाणक्य ने उन सोने के सिक्कों को सेना बनाने के लिए निकाला।
मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री बने चाणक्य
चंद्रगुप्त के राज में आचार्य चाणक्य को मौर्य साम्राज्य का प्रधानमंत्री बनाया गया। राज्य के कार्यों के फैसले उनकी सलाह से लिए जाते थे। उन्होंने अपने राज्य में इस तरह से शहरों, गांवों एवं भवनों का निर्माण कराया कि वे साफ-सुथरे एवं शत्रु प्रतिरोधी बने। चंद्रगुप्त के महल के चारों ओर पानी से भरी गहरी खाई थी। जिसमें मगरमच्छ रहते थे, जिससे कोई बाहरी व्यक्ति किले की दीवार से अंदर नहीं आ पाएं।
भ्रष्टाचार को कम करने के लिए राज्य के हर राजकीय कार्यों में क्रॉस वैरिफिकेशन कराया गया । चाणक्य चंद्रगुप्त के पुत्र बिंदुसार के समय मंा भी मौर्य साम्राज्य के प्रधानमंत्री रहे थे, लेकिन बिंदुसार का जब यह पता चला कि चाणक्य ने ही उसकी मां का पेट चीरा था, तो उन्हें बिंदुसार ने प्रधानमंत्री के पद से हटाया। किंतु जब बिंदुसार को पूरी सच्चाई पता चली तो उन्होंने चाणक्य से वापस प्रधानमंत्री बनने की विनती की। लेकिन चाणक्य वृद्ध हो गए थे, इसलिए उन्होंने प्रधानमंत्री बनने से इनकार कर दिया।
आचार्य चाणक्य की मौत
बिंदुसार ने आचार्य चाणक्य को प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए माफी मांगी। चाणक्य ने उन्हें माफ तो कर दिया लेकिन फिर से प्रधानमंत्री नहीं बने। सुबंधु नामक एक व्यक्ति ने बिंदुसार को भड़काया था, कि चाणक्य ने उनकी माता को मारा था। क्योंकि सुबंधु चाणक्य से जलता था।
जब बिंदुसार ने सुबंधु को चाणक्य के पास उन्हें मनाने भेजा, तो सुबंधु ने वृद्ध चाणक्य को 283 ईसा पूर्व में मार कर जला दिया। चाणक्य ने उसे श्राप दिया जिससे वह पागल हो गया और सुबंधु ने मंत्री पद भी छोड़ दिया। इस प्रकार एक महान व्यक्तित्व वाले आचार्य चाणक्य की मृत्यु हुई। जिन्होंने हमें अर्थव्यवस्था,राजनीति और नीति की बातें सिखालाई।