Kabir Das Biography in Hindi: कबीर दास जी हिन्दी साहित्य के महान कवि, विचारक एवं समाज सुधारक भी थे,उन्होंने अपनी कल्पना शक्ति एवं सकारात्मक विचारों के माध्यम से कई रचनाएं लिखी। कबीर दास के नाम का अर्थ महानता से है अर्थात वे भारत के महानतम कवियों में से एक थे।
भक्तिकाल के कवि कबीरदास जी ने अपनी रचनाओं के माध्यम से लोगों को जीवन जीने का सही मार्ग दिखाया। इसके अलावा उन्होंने समाज में प्रचलित जातिगत भेदभाव,ऊंच-नीच आदि बुराईयों को भी दूर करने का प्रयास किया। कबीरदास जी को कई भाषाओं का ज्ञान था,उनकी रचना और दोहों में आपको ब्रज, हरियाणवी,पंजाबी,हिन्दी,अवधी, राजस्थानी एवं खड़ी बोली मिलती है।
बता दें,कि कबीर दास जी की भक्तिकाल की निर्गुण भक्ति धारा से प्रभावित थे, उनका प्रभाव सिख,हिन्दू और इस्लाम तीनों धर्मों में देखने को प्राप्त होता है। वहीं,उनके उपदेशों को मानकर कोई भी व्यक्ति अपने जीवन को परिवर्तित सकता है।
भारत में जब भी धर्म,भाषा और संस्कृति की चर्चा होती है तो कबीर दास जी का नाम का सबसे पहले आता है क्योंकि उन्होंने ने अपने दोहों से भारतीय संस्कृति को दर्शाया है। उन्होंने अपने जीवन में कई उपदेश दिए हैं। इसके अलावा कबीरदास जी ने अपने दोहों में समाज में व्याप्त कुरोतियों का जिक्र किया है और उनको दूर करने की कोशिश की है।
Kabir Das Biography in Hindi
पूरा नाम | कबीर दास |
जन्म | सन् 1398 |
जन्म स्थान | काशी |
निधन | 1518 |
कबीर दास जी की जन्म
हिन्दी साहित्य के महान कवि कबीर दास जी के जन्म के बारे में कुछ भी सत्यापित नहीं है। कबीर दास जी का जन्म सन् 1398 में काशी में हुआ था। कबीर के माता पिता को लेकर कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे,जिन्हें स्वामी रामानंद जी ने पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया था।
इसलिए उन्होंने अपने नवजात शिशु को काशी में लहरतारा ताल के पास फेंक दिया था। जिसके बाद कबीरदास जी का पालन-पोषण नीमा और नीरुने किया था। यही बालक महान संत कबीर बने और भारत की जन्मभूमि को पवित्र कर दिया। अर्थात कबीरदास ने खुद को एक जुलाहे के रुप में पेश किया-
“जाति जुलाहा नाम कबीरा बनि बनि फिरो उदासी।”
कबीर दास जी की शिक्षा
ऐसा कहते है, कि कबीरदास जी निरक्षर थे,वे अनपढ़ थे। कबीरदास जी दूसरे बच्चों से बिल्कुल अलग थे, बता दें कि गरीबी के कारण उनके माता-पिता ने उन्हें मदरसे नहीं भेजा। इसी कारण कबीरदास जी को l किताबी विद्या नहीं थी।
मसि कागद छूवो नहीं, क़लम गही नहिं हाथ।
बता दें कि कबीरदास जी ने अपने ग्रंथ स्वमं नहीं लिखे बल्कि वे अपने उपदेश और दोहों को मुंह से बोलते थे। जिसके बाद उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया।
कबीर दास जी का योगदान
कबीरदास जी ने अपने लेखन से समाज में फैली कुरीतियों को दूर किया था। उन्होंने सामाजिक भेदभाव और आर्थिक शोषण के खिलाफ विरोध किया है। कवि कबीरदास जी ने अपने जीवन में किसी तरह की शिक्षा ग्रहण नहीं की थी,लेकिन उन्होंने अपने जीवन के अनुभवों, कल्पना शक्ति के बल पर पूरी दुनिया को ज्ञान दिया,जिस पर अमल कर के कोई भी व्यक्ति अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकता है। कबीरदास जी ने आदर्श समाज की स्थापना पर जोर दिया था। हिन्दी साहित्य में उनके अतुलनीय योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
कबीरदास जी का निधन
कबीर दास जी का पूरा जीवन काशी में ही व्यतीत हुआ था, परंतु जब उनका अंतिम वक्त आया, तो वे मगहर चले गए और वहां के लोगों का ऐसा मानना था,कि जो मगहर में किसी मृत्यु होती है उसे नरक की प्राप्ति होती है और जिसकी मृत्यु काशी में होती है उसे स्वर्ग मिलता है।
जब कबीरदास जी को ये अंदेशा हुआ,कि उनका आखिरी समय आ रहा हैं। तो लोगों की इसकी धारणा को तोड़ने के लिए मगहर चले गए। कबीर जी सादा जीवन जीने में विश्वास करते थे। वह अहिंसा,सत्य और सदाचार गुणों के प्रशंसक थे। अपनी भारतभूमि पर कबीरदास जैसे कवियों का जन्म लेना बड़े गौरव की बात है।