Bhagat Singh Biography in Hindi: भगत सिंह भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के सबसे प्रभावशाली क्रांतिकारियों में से थे। उन्होंने कई क्रन्तिकारी संगठनों के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में अपना योगदान दिया था। भारत की आजादी की लड़ाई के वक्त भगत सिंह नौजवानों के लिए यूथ आइकॉन थे, जो उन्हें देश के लिए आगे आने के लिए प्रेरित करते थे। भगत सिंह ने चन्द्रशेखर आजाद एवं पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर भारत की आजादी के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ ब्रिटिश सरकार से मुकाबला किया।
भगत सिंह का सोचना था, कि देश के नौजवान देश की काया पलट सकते है, इसलिए उन्होंने युवाओं को एक नई दिशा दिखाने की कोशिश की थी। पहले लाहौर में बर्नी सैंडर्स की हत्या की और उसके बाद दिल्ली में केन्द्रीय संसद में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भागने से भी इनकार कर दिया था। जिसके लिए अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 को इन्हें और इनके दो साथी राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी पर दे दी। भगत सिंह का पूरा जीवन संघर्षपूर्ण रहा था, आज भी नौजवान उनके जीवन से प्रेरणा लेते है।
Bhagat Singh Biography in Hindi
भगत सिंह का शुरुआती जीवन
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह भारत देश की ऐसी महान विभूति है, जिन्होंने केवल 23 साल की उम्र में अपने देश के लिए प्राण न्योछावर कर दिए थे। सिख परिवार में जन्मे भगत सिंह के पिता का नाम किशन सिंह था, जो उनके जन्म के समय जेल में थे।
बचपन से ही उन्होंने अपने घर वालों में देश भक्ति की भावना देखी थी। उनके चाचा अजित सिंह भी एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जिन्होंने भारतीय देशभक्ति एसोसिएशन का निर्माण किया था। इसमें उनके साथ सैयद हैदर रजा शामिल थे,अजित सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज थे, इसलिए उन्हें ईरान जाना पड़ा। जहां भगत सिंह के पिता ने उनका एडमिशन दयानंद एंग्लो वैदिक हाई स्कूल में करा दिया था।
भगत सिंह का जन्म एवं शिक्षा
भगत सिंह का 28 सितंबर 1907 को एक सिख परिवार में जन्मे थे। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और मां का नाम विद्यावती कौर था। जो एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे। लेकिन कहा जाता हैं कि पुत के पैर पालने में दिखाई देते है भगत सिंह पर 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड का बहुत गहरा असर पड़ा और उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भारत की आज़ादी के लिए नौजवान भारत सभा की स्थापना की।
एक क्रांतिकारी थे भगत सिंह
भगत सिंह सन् 1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड से बेहद दुखी हुए थे। जिसके बाद उन्होंने महात्मा गाँधी जी के द्वारा चलाए गए असहयोग आन्दोलन का उन्होंने खुलकर समर्थन किया। भगत सिंह खुले आम अंग्रेजों को ललकारते थे,और ब्रिटिश बुक्स को जला देते थे।
चौरी चौरा कांड में हुई हिंसात्मक गतिविधि के चलते गाँधी जी को असहयोग आन्दोलन बंद करना पड़ा था, जिससे भगत सिंह खुश नहीं थे और उन्होंने गाँधी जी की अहिंसावादी बातों को छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वाइन करने के बारे में सोचने लगे। उसी दौरान उनकी मुलाकात सुखदेव थापर, भगवती चरन और कुछ लोगों से हुई। उस समय आजादी के लिए देश में जंग झिड़ी हुई थी। देशप्रेम में भगत सिंह ने अपनी कॉलेज की पढाई छोड़ आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए।
कॉलेज में भगत सिंह कई नाटकों में हिस्सा लेते था, वे बहुत अच्छे अभिनेता थे, उनके नाटक और कहानी देशभक्ति से भरी हुई होती थी, जिसमें वे नौजवानों को आजादी के लिए आगे आने को प्रेरित करते थे। भगत सिंह बहुत मस्त मौला प्रवृत्ति के इन्सान थे और वे लिखने के भी बहुत शौकीन थे। उन्होंने कॉलेज में कई निबंध लिखे, जिसके लिए उन्हें बहुत से प्राइस मिले थे।
भगत सिंह को दी गई फांसी
भगत सिंह अपने आप को शहीद कहते थे। जिसके बाद उनके नाम के आगे शहीद जुड़ गया। भगत सिंह, शिवराम राजगुरु एवं सुखदेव पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई। ये तीनों कोर्ट में भी इंकलाब जिंदाबाद का नारा लगाते रहे।
भगत सिंह को जेल में भी बहुत यातनाएं सहनी पड़ी, उस समय भारतीय कैदियों के साथ अच्छा सलूक नहीं किया जाता था,लेकिन भगत सिंह ने जेल में भी कैदियों की स्थिति को सुधारने के लिए आन्दोलन शुरू कर दिया,उन्होंने अपनी मांग पूरी करवाने के लिए अन्न जल का त्याग कर दिया। जिसके लिए अंग्रेज पुलिस उन्हें बहुत मारती थी, लेकिन उन्होंने अंत तक हार नहीं मानी। सन् 1930 में भगत सिंह जी ने Why I Am Atheist नाम की पुस्तक भी लिखी। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को फांसी दे दी गई।