Steve Jobs Biography in Hindi: 80 के दशक के पर्सनल कम्प्यूटर युग के करिश्माई अग्रदूत कहे जाने वाले स्टीव जॉब्स ने सन् 1976 में एपल इंक की स्थापना की थी और कंपनी को दूरसंचार में एक विश्व नेता के रूप में तब्दील कर दिया था। व्यापक रूप से एर दूरदर्शी एवं प्रतिभाशाली माने जाने वाले उन्होंने आइपॉड एवं आईफोन जैसे क्रांतिकारी उत्पादों के लॉन्च का निरीक्षण किया था। स्टीव जॉब्स एक अमेरिकी बिजनेस टाइकून, अविष्कारक और निवेशक थे।
अगस्त साल 2011 में स्टीव जॉब्स ने एप्पल इंक के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वे पिक्सर एनीमेशन स्टूडियोज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद पर रहे। साल 2006 में वह द वाल्ट डिज्नी कंपनी के निदेशक मंडल के सदस्य भी बने। उनके बाद डिज्नी ने पिक्सर का अधिग्रहण किया और सन् 1995 में रिलीज हुई फिल्म टॉय स्टोरी में स्टीव ने बतौर कार्यकारी निर्माता काम किया।
कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनी एप्पल के पूर्व सीईओ और अमेरिकी उद्योगपति स्टीव जॉब्स बहुत मेहनत करके इस मुकाम तक पहुंचे है। कैलिफोर्निया के सेन फ्रांसिस्को में पैदा हुए स्टीव को पाउल और कालरा जॉब्स ने उनकी माँ से गोद लिया था। स्टीव जॉब्स ने अपनी पढ़ाई कैलिफोर्निया में ही की थी, उस वक्त उनके पास ज्यादा पैसे नहीं थे और वे अपनी आर्थिक समस्या को दूर करने के लिए गर्मियों की छुट्टियों में भी काम किया करते थे।
Steve Jobs Biography in Hindi
स्टीव जॉब्स का प्रारंभिक जीवन
स्टीव जॉब्स की जन्म 24 फरवरी 1955 को कैलिफोर्निया में हुआ था, उनकी माता कॉलेज की छात्रा थी, जो अविवाहित थी। इसलिए उन्होंने किसी अच्छे परिवार में जॉब्स को गोद देने का निर्णय किया। उसके बाद उन्हें कैलिफोर्निया के ही रहने वाले पॉल और कालरा ने गोद लिया। उनके गोद लेने वाले माता-पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे और एक मिडिल क्लास फैमिली से संबंध रखते थे।
मई 1973 में जॉब्स अटारी में एक टेक्ननीशियन के रूप में काम करते थे, वहां लोग उसे मश्किल है लेकिन मूल्यवान कहते थे। 1974 में स्टीव जॉब्स आध्यात्मिक ज्ञान की खोज में अपने कुछ कॉलेज मित्रों के साथ करोली बाबा से मिलने भारत आए। लेकिन जब ने करोली बाबा के आश्रम में पहुंचे तो उनको मालूम हुआ कि उनकी मृत्यु 1973 में हो चुकी थी। उसके बाद उन्होंने हैड़खन बाबाजी से मिलने का फैसला किया और इस कारण ही भारत में उन्होंने काफी वक्त दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में व्यतीत किया।
सन् 1976 में स्टीव वोजनियाक ने मेकिनटोश एप्पल 1 कम्प्यूटर का अविष्कार किया। जिसे देखकर जॉब्स ने इसे बेचने की सलाह दी। जिसे बेचने के लिए जॉब्स और वोजनियाक गैरेज में एप्पल कंप्यूटर का निर्माण करने में जुट गए। और साल 1976 में जॉब्स एप्पल के सह-संस्थापक बन गए एवं पर्सनल कंप्यूटर सेल करने लगे। एप्पल की मांग तेजी से बढ़ती गई और कमाई करती गई। पहले साल के अंत में पर्सनल कंप्यूटर बनाने वाली दूसरी कंपनी बन गई।
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स्टीव जब 15 साल के हुए तब उनके पिता ने उन्हें तोहफे में एक सैकेंडहैंड कार दी। जिसमें उनके पिता ने नया इंजन लगाकर कामचलाऊ बनाया। अपने स्कूली दिनों में स्टीव को मैरीजुआना की लत पड़ गई, जो एक प्रकार का नशीला पदार्थ है। यह बात जब उनके पिता को पता चली, तो उन्होंने जॉब्स को डांटा और कभी नशीला पदार्थ ना खाने का वादा लिया। स्टीव जॉब्स को तैराकी में बेहद दिलचस्पी थी, और वे स्कूल की तैराकी टीम का हिस्सा भी थे। उसकी दौरान स्टीव जॉब्स की मुलाकात स्टीव वोजनियाक से हुई, जिन्हें भी इलेक्ट्रॉनिक्स में दिलचस्पी थी।
स्टीव जॉब्स इलेक्ट्रॉनिक्स में अधिक रूचि रखते थे, लेकिन रीड कॉलेज में जब वे पढ़ रहे थे, उस दौरान उनका ध्यान आध्यात्म की तरफ बढ़ गया। स्टीव जॉब्स बाबा रामदास की एक पुस्तक बी हियर नाउ से बहुत प्रभावित हुए। इसी कॉलेज में स्टीव डेनियल कोटक से मिले। जॉब्स आध्यात्म के संपर्क में आते ही शाकाहारी बन गए और शाकाहार पर उन्होंने कई पुस्तकें पढ़ी। अपने मित्र डेनियल कोटक को भी जॉब्स ने शाकाहारी बना दिया। आध्यात्म की ओर अधिक झुकाव होने कारण उन्होंने कृष्ण मंदिर जाना शुरु कर दिया। यहीं स्टीव जॉब्स के जीवन का परिवर्तनकारी दौर था।
एप्पल कंपनी की स्थापना
जब स्टीव जॉब्स की उम्र केवल 20 वर्ष की थी तब उन्होने सन् 1976 में एप्पल कंपनी की शुरुआत की थी। उन्होंने अपने स्कूल सहपाठी मित्र वोजनियाक की संग मिल अपने पिता के गैरेज में ही एक ऑपरेटिंग सिस्टम मेकिनटोश तैयार किया और इसको बेचने के लिए एपल कंप्यूटर की निर्माण करना चाहते थे। लेकिन पैसों की कमी के चलते उनके सामने समस्याएं खड़ी हो रही थी। उनकी इस समस्या का समाधान उनके ही मित्र माइक मर्कुल्ला ने किया और वे कंपनी में साझेदार बन गए।
जिसके बाद स्टीव ने एपल कंप्यूटर बनाने की शुरुआत की। लेकिन उन्हें यह उपलब्धि ज्यादा वक्त नसीब नहीं हुई। उनके साझेदारों के द्वारा उनको नापसंद किए जाने और आपस में कहासुनी के चलते एपल कंपनी की लोकप्रियता कम होने लगी। जिससे पूरी कंपनी कर्ज में डूब गई। जिसके बाद स्टीव को दोषी करार देकर बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की मीटिंग में सन् 1985 में उन्हें एप्पल कंपनी से बाहर कर दिया। उनके लिए जीवन का यह सबसे दुखी पल था।
कैसे हुई जॉब्स की मृत्यु?
सन् 2003 में स्टीव जॉब्स में पता चला, कि उन्हें अग्न्याशय कैंसर है और उसके अगले साल उन्होंने एक पुननिर्माण सर्जरी करा ली, जिसे व्हीपल ऑपरेशन के रूप में जानते है। सन् 2009 में जॉब्स का लिवर ट्रांसप्लांट हुआ और अगस्त 2011 में उन्होंने एप्पल के सीईओ के पद से त्यागपत्र दे दिया और उसके दो माह बाद स्टीव जॉब्स की 56 वर्ष की उम्र में मृत्यु हो गई।